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मा नो॑ व॒धैर्व॑रुण॒ ये त॑ इ॒ष्टावेनः॑ कृ॒ण्वन्त॑मसुर भ्री॒णन्ति॑। मा ज्योति॑षः प्रवस॒थानि॑ गन्म॒ वि षू मृधः॑ शिश्रथो जी॒वसे॑ नः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no vadhair varuṇa ye ta iṣṭāv enaḥ kṛṇvantam asura bhrīṇanti | mā jyotiṣaḥ pravasathāni ganma vi ṣū mṛdhaḥ śiśratho jīvase naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॒। व॒धैः। व॒रु॒ण॒। ये। ते॒। इ॒ष्टौ। एनः॑। कृ॒ण्वन्त॑म्। अ॒सु॒र॒। भ्री॒णन्ति॑। मा। ज्योति॑षः। प्र॒ऽव॒स॒थानि॑। ग॒न्म॒। वि। सु। मृधः॑। शि॒श्र॒थः॒। जी॒वसे॑। नः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:28» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (असुर) दुर्गुणों को दूर करनेहारे (वरुण) वायु के तुल्य वर्त्तमान पुरुष (ये) जो लोग (ते) आपके (इष्टौ) संगति करने रूप व्यवहार में (एनः) पाप (कृण्वन्तम्) करते हुए को (भ्रीणन्ति) धमकाते हैं वे (नः) हमारे (वधैः) मारने से (मा) न वर्त्तें (ज्योतिषः) प्रकाश से (प्रवसथानि) प्रवासों दूर देशों को (मा,गन्म) न प्राप्त हों आप (नः) हमारे (जीवसे) जीवन के लिये (मृधः) संग्रामों को (वि,शिश्रथः) विशेषकर मारिये जिससे हमलोग निरन्तर सुख को (सु) अच्छे प्रकार प्राप्त होवें ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धर्मात्माओं को नहीं मारते, दुष्टों को ताड़ना देते, किसी के प्रवास को न रोकते और सबके सुख के लिये शत्रुओं को जीतते हैं, वे अतुल सुख को प्राप्त होते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

हे असुर वरुण ये त इष्टावेनः कृण्वन्तं भ्रीणन्ति ते वधैर्मा वर्त्तेरन्। ज्योतिषः प्रवसथानि मा गन्म त्वं नो जीवसे मृधो विशिश्रिथो यतो वयं सततं सुखं सुगन्म ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (वधैः) हननैः (वरुण) वायुरिव वर्त्तमान (ये) (ते) तव (इष्टौ) यजने सङ्गतिकरणे (एनः) पापम् (कृण्वन्तम्) कुर्वन्तम् (असुर) प्रक्षेप्तः (भ्रीणन्ति) भर्त्सयन्ति (मा) (ज्योतिषः) प्रकाशात् (प्रवसथानि) प्रवासान् (गन्म) प्राप्नुयाम (वि) (सु)। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः (मृधः) सङ्गमान् (शिश्रथः) हिंधि (जीवसे) जिवितुम् (नः) अस्माकम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या धार्मिकान्न हिंसन्ति दुष्टान् ताडयन्ति कस्याऽपि प्रवासनं न निरुन्धन्ति सर्वेषां सुखाय शत्रून् विजयन्ते तेऽतुलं सुखमाप्नुवन्ति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे धर्मात्म्यांची हत्या करीत नाहीत, दुष्टांचा नाश करतात, कुणाच्या प्रवासात अडथळा आणत नाहीत व सर्वांच्या सुखासाठी शत्रूंना जिंकतात, त्यांना अतुल सुख प्राप्त होते. ॥ ७ ॥